भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहुँच तेरे आधरों के पास / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
Tusharmj (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:08, 26 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} पहुँच तेरे अधरों के पास हलाह…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


पहुँच तेरे अधरों के पास

हलाहल काँप रहा है, देख,

मृत्‍यु के मुख के ऊपर दौड़

गई है सहसा भय की रेख,


मरण था भय के अंदर व्‍याप्‍त,
हुआ निर्भय तो विष निस्‍तत्‍त्‍व,
स्‍वयं हो जाने को है सिद्ध
हलाहल से तेरा अमरत्‍व!