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उस हरी दूब के ऊपर / सुमित्रानंदन पंत

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उस हरी दूब के ऊपर
छाया जो बादल सुंदर,
वह बरस पड़ा अब झर झर,
वह चला गया हँस-रोकर!
अह, भरा हुआ यह जीवन
ज्यों अश्रु भरा सावन घन,
साक़ी के मधु अधरों पर
झर झर हो जाय निछावर!