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कोई जा रहा है सवेरे-सवेरे / गुलाब खंडेलवाल
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कोई जा रहा है सवेरे-सवेरे
सकुचता, सिहरता, सहमता, लजाता
खुद अपनी ही आँखों से आँखें चुराता
उतर चाँद ज्यों झील में झिलमिलाता
नजर आ रहा है सवेरे-सवेरे
ये आँखों की अनबूझ, अनमोल भाषा
पलटकर ये फिर लौटने का दिलासा
ये बिंदी मिटी-सी, ये काजल पुँछा-सा
गजब ढा रहा है सवेरे-सवेरे
नजर अब भी सपनों में खोयी हुई है
हँसी ज्यों शहद में डुबोई हुई है
कोई तान होठों पे सोयी हुई है
जिसे गा रहा है सवेरे-सवेरे
कोई जा रहा है सवेरे-सवेरे