भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैंने तेरी तान सुनी है / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:20, 27 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=सब कुछ कृष्णार्पणम् / गु…)
मैंने तेरी तान सुनी है
शांत विजन में
सुमन-सुमन में
हर तरु-तृण में
लय अनजान सुनी है
दूर गगन में
तारा-गण में
है त्रिभुवन में
जो गतिवान, सुनी है
अपने मन में
हर धड़कन में
आकुल क्षण में
रचते गान सुनी है
मैंने तेरी तान सुनी है