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अंबर फिर फिर क्या करता स्थिर / सुमित्रानंदन पंत

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अंबर फिर फिर क्या करता स्थिर,
यह चिर अविदित!
छीन स्वप्न सुख, देता क्यों दुख
वह सब को नित!
बीते युग-क्षण करते चिन्तन
स्थिर न हुआ चित,
किया क्या उमर, गँवा दी उमर,
रहा अनिश्चित!