भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब तुम किसी मधुर अवसर पर / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:29, 27 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह= मधुज्वाल / सुमित्रान…)
जब तुम किसी मधुर अवसर पर
मिलो कहीं हे बंधु, परस्पर,
एक दूसरे पर हो जाओ
तुम अपने को भूल निछावर!
जब हँसमुख साक़ी आ सुंदर
अधरों पर धर दे मदिराधर,
वृद्ध उमर को भी तब क्षण भर
कर लेना तुम याद दया कर!