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कोयल पंचम सुर में बोली / गुलाब खंडेलवाल
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कोयल पंचम सुर में बोली
मधुर सुरों ने ज्यों अंतर की दुखती गाँठ टटोली
शांत प्रकृति के उर में फिर से लहर प्यार की डोली
राग-बिरंगे फूल आ गये बना-बनाकर टोली
जो रहस्य की बात आज तक नहीं गयी थी खोली
फैल गयी है वह घर-घर में बनकर एक ठिठोली
तेरा वह छिपकर आना, मुख पर मल देना रोली
जाने कैसे पल भर में ही थी अनहोनी हो ली
नाच रही है स्मृति में कोई चितवन भोली-भोली
फिर गुलाब की पंखुड़ियों से भर ली मैंने झोली
कोयल पंचम सुर में बोली