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कौन-सी पहिचान होगी? / गुलाब खंडेलवाल
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कौन-सी पहिचान होगी?
जब तुम्हारी दृष्टि भी मेरे लिए अनजान होगी?
आज जो मुस्कान बंकिम मृदु अधर पर खिल रही है
चितवनों में प्यार की अनुभूति मादक मिल रही है
आज जो हर साँस में दीपक-शिखा झिलमिल रही है
कल अगम किस शून्य में वह ज्योति अंतर्धान होगी
कौन जाने, लौटकर कल हम यहाँ आयें न आयें!
कौन जाने, कल हमारा नाम भी सब भूल जाएँ!
मिट सकेंगी पर हमारे प्राण की ये सर्जनाएं!
दीप्ति जिनकी काल के भी गाल में अम्लान होगी
कौन-सी पहिचान होगी?
जब तुम्हारी दृष्टि भी मेरे लिए अनजान होगी?