भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धर्म वंचकों को यदि मुझसे / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:37, 28 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह= मधुज्वाल / सुमित्रान…)
धर्म चकों को यदि मुझसे
कभी मित्रता हो स्वीकार
वे मेरे दुःखों के बदले
इतना मात्र करें उपकार,--
मेरे मरने बाद देह की
रज से ईंटें कर तैयार
चुनवा दें वे मदिरालय के
खँडहर की टूटी दीवार!