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धर्म वंचकों को यदि मुझसे / सुमित्रानंदन पंत

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धर्म वंचकों को यदि मुझसे
कभी मित्रता हो स्वीकार
वे मेरे दुःखों के बदले
इतना मात्र करें उपकार,--
मेरे मरने बाद देह की
रज से ईंटें कर तैयार
चुनवा दें वे मदिरालय के
खँडहर की टूटी दीवार!