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सतत यत्न कर सुख हित कातर / सुमित्रानंदन पंत

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सतत यत्न कर सुख हित कातर
जर्जर प्राण, जीर्ण अब वेश,
श्रीहत तन, निर्वेद युक्त मन,
कुंठित यौवन का आवेश!
तलछट मात्र रही अब मदिरा
रिक्त प्राय साक़ी का जाम,
ज्ञात नहीं पर वृद्ध उमर के
वर्ष आयु के कितने शेष!