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हाय, कहीं होता यदि कोई / सुमित्रानंदन पंत
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हाय, कहीं होता यदि कोई
बाधा हीन निभृत संस्थान
मर्म व्यथा की कथा भुलाकर
जहाँ जुड़ा सकता मैं प्राण!
वहीं कहीं छिप उमर अकिंचन
करता क्षण भर को विश्राम,
जीवन पथ की श्रांति क्लांति हर
करता इच्छित मदिरा पान!