भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिसके उर का अंध कूप / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:31, 28 मई 2010 का अवतरण ("जिसके उर का अंध कूप / सुमित्रानंदन पंत" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
जिसके उर का अंध कूप
हो उठा प्रीति जल से परिप्लावित,
हँसने रोने में न गँवाता
वह अमूल्य जीवन क्षण निश्चित!
प्रिय चरणों पर उमर निछावर
चखता स्वतः स्फुरित मदिरामृत,
लाला के रँग की हाला भर
पीता बाला के सँग प्रमुदित!