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सीढ़ियाँ / गुलाब खंडेलवाल

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सीढ़ियों पर सीढ़ियाँ
चढ़ती ही जाती हैं पीढ़ियाँ
पता नहीं
कोई कभी पहुँची भी कहीं
अथवा एक ही घर में,
ऊपर नीचे के गोल चक्कर में
घूमती रही है, जैसे
कोल्हू में जुते भैंसे