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नज़र में आजतक मेरी कोई तुझसा नहीं निकला / ओमप्रकाश यती
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नज़र में आजतक मेरी कोई तुझसा नहीं निकला
तेरे चेहरे के अंदर दूसरा चेहरा नहीं निकला
कहीं में डूबने से बच न जाऊं, सोचकर ऐसा
मेरे नजदीक से होकर कोई तिनका नहीं निकला
ज़रा सी बात थी और कश्मकश ऐसी कि मत पूछो
भिखारी मुड़ गया और जेब से सिक्का नहीं निकला
सड़क पर चोट खाकर आदमी ही था गिरा लेकिन
गुज़रती भीड़ का उससे कोई रिश्ता नहीं निकला
जहाँ पर जिंदगी की यूँ कहें खैरात बंटती थी
उसी मंदिर से कल देखा कोई जिंदा नहीं निकला