भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नित्य आत्महत्या करती हैं / योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:45, 31 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ }} {{KKCatNavgeet}} <poem> नित्य आत्मह…)
नित्य आत्महत्या करती हैं
इच्छाएँ सारी
आय अठन्नी खर्च रुपैया
इस महँगाई में
बड़की की शादी होनी है
इसी जुलाई में
कैसे होगा ? सोच रहा है
गुमसुम बनवारी
बिन फ़ोटो के फ्रेम सरीखा
यहाँ दिखावा है
अपनेपन का विज्ञापन-सा
सिर्फ़ छलावा है
अपने मतलब की ख़ातिर नित
नई कलाकारी
हर पल अपनों से ही सौ-सौ
धोखे खाने हैं
अंत समय तक फिर भी सारे
फ़र्ज़ निभाने हैं
एक अकेला मुखिया घर की
सौ ज़िम्मेदारी