भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुनिया ने पीहर में आना-जाना छोड़ दिया / योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:04, 31 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’ }} {{KKCatNavgeet}} <poem> मुनिया ने प…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुनिया ने पीहर में आना-
जाना छोड़ दिया

ना पहले जैसा अपनापन
ना ही प्यार दिखा
फ़र्ज़ कहीं ना दिखा; दिखा तो
बस अधिकार दिखा

चिट्ठी ने भी माँ का हाल
बताना छोड़ दिया

वृद्ध पिता का बरगद-सा जब
साया नहीं रहा
मिट्ठू ने भी राम-राम तक
मन से नहीं कहा

ममता ने भी भावों को
दुलराना छोड़ दिया

बीते कल को सोच-सोचकर
नयन हुए गीले
कच्चे धागे के बंधन भी
पड़े आज ढीले

चावल ने रोली का साथ
निभाना छोड़ दिया