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लाओ हे लज्जास्मित प्रेयसि / सुमित्रानंदन पंत
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मदिर नयन की, फूल वदन की
प्रेमी को ही चिर पहचान,
मधुर गान का, सुरा पान का
मौजी ही करता सम्मान!
स्वर्गोत्सुक जो, सुरा विमुख जो
क्षमा करे, उनको भगवान,
प्रेयसि का मुख, मदिरा का सुख
प्रणयी के, मद्यप के प्राण!