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छोड़ काज, आओ मधु प्रेयसि / सुमित्रानंदन पंत
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छोड़ काज, आओ मधु प्रेयसि,
बैठो वृद्ध उमर के संग,
क़ैक़ुवाद औ’ केख़ुसरू का
छेड़ो मत प्राचीन प्रसंग!
हुआ धराशायी चिर रुस्तम
जीत जगत जीवन संग्राम,
रहा न हातमताई का भी
सांध्य भोज का अब रस रंग!