भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निभृत विजन में मेरे मन में / सुमित्रानंदन पंत

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:52, 31 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह= मधुज्वाल / सुमित्रान…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निभृत विजन में मेरे मन में
हुआ एक दिन स्वप्नाभास,--
मुग्ध यौवना गीत गुनगुना
बैठी है ज्यों मेरे पास!
मेरा मन खो गया विहग बन
नयन नीलिमा में तत्काल,
वैभव सुख की, सुत के मुख की
रही न फिर मुझको अभिलाष!