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निभृत विजन में मेरे मन में / सुमित्रानंदन पंत
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निभृत विजन में मेरे मन में
हुआ एक दिन स्वप्नाभास,--
मुग्ध यौवना गीत गुनगुना
बैठी है ज्यों मेरे पास!
मेरा मन खो गया विहग बन
नयन नीलिमा में तत्काल,
वैभव सुख की, सुत के मुख की
रही न फिर मुझको अभिलाष!