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आज़ाद / सुमित्रानंदन पंत

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पैगंबर के एक शिष्य ने
पूछा, ‘हज़रत बंदे को शक
है आज़ाद कहाँ तक इंसाँ
दुनिया में पाबंद कहाँ तक?’
‘खड़े रहो’ बोले रसूल तब,
‘अच्छा, पैर उठाओ ऊपर,’
‘जैसा हुक्म!’ मुरीद सामने
खड़ा हो गया एक पैर पर!
‘ठीक, दूसरा पैर उठाओ’
बोले हँसकर नबी फिर तुरत,
बार बार गिर, कहा शिष्य ने
‘यह तो नामुमकिन है हज़रत!’
‘हो आजाद यहाँ तक, कहता
तुमसे एक पैर उठ ऊपर,
बँधे हुए दुनिया से कहता
पैर दूसरा अड़ा जमीं पर!’--
पैगंबर का था यह उत्तर!