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ऑफ़िस-तंत्र-5 / कुमार अनुपम

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'आय एम नॉट इंट्रेस्टेड
कि कैसे चला लेते हो तुम इत्ती-सी पगार में समूचा परिवार
और वह भी निरी ईमानदारी की शर्त पर दरअसल
यही है मेरे लिए अचरज की फुरफुरी
यही है मेरे विश्वास और निश्चिन्तता का मज़बूत आधार

तुम्हारे फादर ही थे न जो आये थे उस रोज़
घुटने तक धोतीवाले
मैं तो देखते ही पहचान गया था भले कभी मिला नहीं था तो क्या
उस किसान ने बोई है कड़ी धूप में तपकर तुममें अपनी उम्मीद
उसके सपनों को तुम्हें ही सच करना है

तुम्हारी पत्नी प्रेगनेंट है मुझे पता लगा है
उसकी मेडिसिन्स का खास ख्य़ाल रखने का वक़्त है यह
बच्चों को अच्छे स्कूल में ही पढ़ाना, समझ रहे हो न

वैसे एक दिन पहले
भेज तो देता है न तुम्हारे खाते में सेलरी
कि डाँटूँ एकाउंटेंट को अभी फिर से

अरे जोश से भरे जवान हो तुम लोग
आगे बढ़कर सम्हालो जि़म्मेदारियाँ

मैं तो इस उम्र में भी फेंक सकता हूँ चार वर्करों का काम
फिर तुम तो माशाअल्ला...

और हाँ ज़रा कम लिया करो छुट्टियाँ

तुम देख ही रहे हो स्टॉक मार्केट की मन्दी
हमारी मजबूरी में तुम लोग ही नहीं लोगे इंट्रेस्ट
तो कैसे बचेगा ऑिफस
और तुम लोग भी
कि दूसरे ऑफ़िसों का हाल कोई अलग तो है नहीं... कि नहीं

वैसे अचरज की फुरफुरी उठती है रह रह कि...

अब मुझे भी मज़ा आने लगता है बॉस से साथ साथ
हँसता हूँ दाँत चियार
फिर बॉस के केबिन से किसी 'हाँ में थरथराता
निकलता हूँ
कहीं न जाने के लिए अपनी सीट तक अकसर की तरह आता हूँ।