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हीरों की पोटली सर पर लादे / गुलाब खंडेलवाल
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हीरों की पोटली सर पर लादे
मै सब्जीबाजार में जा पहुँचा
जहाँ सुबह से शाम तक भटकते फिरने पर भी
किसीने मुझे पानी को भी नहीं पूछा
जबकि मेरे अन्य साथी
साग-भाजी की टोकरियाँ लिये
हीरों की मंडी में चले गये
और कौड़ियों की वस्तु सोने के मोल बेचकर भी
यही कहते रहे, 'हम छले गये.'