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कुछ देर साथ चलो / मदन कश्यप

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कुछ देर साथ चलो
महानगर बनते शहर की काली सड़क पर
इस ढलती मगर जलती तिपहरी में चलना कठिन है
फिर भी कुछ देर साथ चलो

यही समय है कि सड़कें सूनी हैं
तुम्हारा कुछ दूर हटकर चलना भी
साथ-साथ चलने-सा लगेगा
थोड़ी देर निहारूँगा तेज धूप में दमकता
पसीने से लथपथ तुम्हारा चेहरा
और कभी नहीं प्रकट होने दूँगा
तुम्हें बाजू में समेटकर
अंतरिक्ष की ओर भाग जाने की अपनी इच्छा

बस थोड़ा दूर-दूर ही सही
थोड़ी दूर तक चलो

इस शहर में शामें सुनहरी नहीं होतीं
कोई ऐसी ममतामयी वाटिका भ्ज्ञी नहीं
जिसके एकांत के आँचल में थोड़ी देर दुबक सकें हम
कोई झील नहीं
जो हमारे स्नेह को दे सके शीतल स्पर्श
बस तपती हुई सड़क का निर्मम सूनापन है
यह काफी है कुछ दूर तक साथ चलने के लिए
कुछ देर साथ चलो!