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एक दिन चाँद / विष्णु नागर
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जब मैंने चाँद को देखा
तो चाँद ने भी मुझे देखा
जब मैंने उससे बातें कीं
तो उसने भी मुझसे बातें कीं
लेकिन जब मैं उससे मिलने आगे बढ़ा
तो वह मुझसे आगे बढ़ गया
एक दिन तो वह इतना
आगे बढ़ा
कि उस तक पहुँचूँ-पहुँचूँ, तब तक तो सुबह हो चुकी थी!