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प्रेम में रोना / विष्णु नागर

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कई बार हमें
इतना प्रेम मिलता है
इतना कि हम डरकर
रोने लग जाते हैं
और इतना रोते हैं
कि हमसे प्रेम करने वाला
दुबारा लौटकर नहीं आता