भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उन्नीस सौ चौरासी/ मुकेश मानस
Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:04, 4 जून 2010 का अवतरण
उन्नीस सौ चौरासी
मेरी गली की
औरतें दुखियारी
विधवा हैं सारी
सब जी रही हैं ऐसे
मजबूरी में कोई
रस्म निभाए जैसे
मेरे ज़हन में
कभी नहीं सोती है
सारी गली रोती है
1985