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ज़िन्दगी / मुकेश मानस
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जिन्दगी
उसने कहा
जिन्दगी ऐसी नहीं
जैसी मैंने समझी
जिन्दगी वैसी होगी
जैसी तुम समझोगे
मैं सोच रहा हूं
क्या जिन्दगी ऐसी होगी
जैसी मैं जी रहा हूं
रचनाकाल:1989