भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उधेड़-बुन / मुकेश मानस

Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:26, 6 जून 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये कैसा नरक है
जिसमें हम जी रहे हैं
जाने-अनजाने ज+हर पी रहे हैं

इस सवाल से क्यों पड़ता है
बार-बार मेरा वास्ता
मेरे लोगों को बचा ले जो
वह कौन-सा है रास्ता

बार-बार अपने शहीदों का
ख्याल आता है
फिर अपनी जवानी पर
मलाल आता है
अपने ही लोगों पर
जाने क्यों प्यार आता है
ये कैसा विश्वास है
जो बार-बार आता है

रचनाकाल:1990