भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदी / मुकेश मानस

Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:31, 6 जून 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये नदी तो नहीं रुकेगी
अगर आप रुके रहे
तो बस चली जाएगी
ट्रेन छूट जाएगी
और आपकी नौकरी जाएगी
आप देखते रह जाएंगे

अगर आप नहीं रुके
तो आपकी जान जाएगी
या टूटेगी टांग
घर जाने की बजाए
आप अस्पताल जाएंगे
आपकी बीबी, आपके बच्चे
देखते रह जाएंगे

आइए दें एक दूजे का साथ
थाम लें हाथों में हाथ
और इस भागती नदी को पार करें

रचनाकाल:1997