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यूरोप की धरती / कर्णसिंह चौहान

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यूरोप की धरती यह
इस पर
पुराने ख़यालों को छोड़
कोई नई बात करें ।

बहुत हो चुका
ग़रीबी का रोना
मनुष्य का मनुष्य के
पक्ष में होना
साम्राज्यवाद, पूंजीवाद
क्रांति, शांति, जनवाद
कोरे अर्थहीन शब्द
मानसिक प्रमाद
जीवन की जड़ता को तोड़
कुछ नई बात करें
यूरोप की धरती यह ।

गुलाबों की घाटी में उठे
ये पयोधर
ग्रीक सीमा पर
रहस्मय पर्वतों बीच
फैले नदी-ताल
मैलनिक की मदिरा में
इसे निहारो
नयन भरें
यूरोप की धरती यह ।

भूलकर शीत ताप
घर शहर
स्वछंद तंबू में बस जाओ
सागर पर पसरो
निर्व्याज, निर्वसन
क्या करोगे जानकर
कौन सा शासन है
सोफ़िया में इस वक़्त
मुक्त क्षेत्र, मुक्त काम
यूरोप की धरती यह्।