भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इतनी-सी बात / विष्णु नागर

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:33, 8 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णु नागर |संग्रह=घर से बाहर घर / विष्णु नागर }} <…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह देखना चाहती है सिर्फ उसे
मगर देख रही है कहीं और
जबकि वह देख रही टकटकी बांध सिर्फ उसी की ओर

एक-दूसरे को देखने के ये अपने-अपने तरीके हैं
इस तरह सुनने-समझने
मौन-मुखर रहने के भी

प्रेम की पहली सीढ़ी है यह
इसमें न कहकर कहा जाता है
न सुनकर सुना जाता है
न देखकर देखा जाता है

अभी तो बात सिर्फ इतनी-सी है.