कोई ख़ास ख़बर नहीं है / मनोज श्रीवास्तव
कोई ख़ास खबर नहीं है
सृष्टि-विसर्जन की भविष्यवाणियाँ सेक्सी गानों के बीच ब्रेक के रूप में की जा रही हैं, बच्चे टी.वी. की टैलेंट हंट सीरियलों में नाचती-गाती लड़कियों के साथ कमर मटका रहे हैं और क्रेजी किशोर-किशोरियां छतों पर क्रिकेट में जीत पर पटाखे छोड़ रहे हैं जबकि विश्वविद्यालय के भाषा संकाय में इतराभाशियों का क़त्ल ठीक राष्ट्रगान के बाद किया जा रहा है
कोई ख़ास खबर नहीं है जिन भाषाविदों ने मासूम लड़की की इतरभाषा बोलने के जुर्म में इस्मत-अस्मत लूट निचाट में क्रूर ठण्ड की दया पर छोड़ दिया था, वे मानव-संसाधन विकास मंत्रालय के शिष्टमंडल की ओर से विश्व हिन्दी सम्मलेन में शिरकत कर रहे हैं
बातें कुछ ख़ास नहीं हैं सहज आतंकी आदतों में विस्फोट में हलाख हुओं की ज़िम्मेदारी बच्चे खुशी-खुशी लेना चाह रहे हैं और गाँव के मदरसों में बच्चे कागज़ की नाव से आर डी एक्स के ज़खीरे वाया साउथ ईस्ट एशिया महानगरों में सप्लाई कर रहे हैं
मैं उन लीडरों की दरियादिली की दाद देता हूँ जो इन होनहार बच्चों की हौसला-आफजाई में गणतंत्र दिवस पर सम्मानित करने की वकालत कर रहे हैं,
बेशक! इन बच्चों को खौफनाक विस्फोटक सौंपकर अभी चन्द्रमा और मंगल पर भेजा जाना है और यही कौमी माहौल बाकी गैलेक्सियों में भी फैलाया जाना है
इस साधारणीकृत दौर में कहने को कुछ ख़ास नहीं है हाँ! वैज्ञानिक प्रयोगों के तहत पृथ्वी विनाश की रोमांचक प्रक्रिया में है जिसे प्रागैतिहास में वापस भेजे जाने के लिए दिवंगत तानाशाहों के प्रेतों के पुनर्जन्म में विज्ञान को सफलता मिलाने वाली है, जबकि गुमटियों पर गरमा-गरम चाय-पकौड़ों की सेल कुछ ज़्यादा ही बढ़ती जा रही है.
(रचनाकाल: १३-११-२००८ )