भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चंकी पांडे मुकर गया है / उदय प्रकाश

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:50, 10 जून 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लोकप्रिय टी-सीरीज़ कंपनी का मालिक गुलशन कुमार
हत्या के वर्षों बाद भी अभी तक गाता है माता के जागरण के भजन, और दिखता है वैष्णो देवी की चढ़ाई चढ़ता हुआ,
माथे पर बांधे हुए केसरिया स्कार्फ
गोल मटोल चेहरा, काले घुंघराले बाल, चमकदार हंसती सी छोटी-छोटी रोमानी आंखें
हर कोई जानता है कि वह पहले दरियागंज में चलाता था फ्रूट-जूस की दूकान
इसके बाद उसने व्यापार किया संगीत का
जिसकी कंपनी के कैसेट के लिए गाती है अनुराधा पौडवाल
जिसके पति अरुण को अब सब भूल चुके हैं जो पहाड़ से प्रतिभा और संगीत लेकर गया था
अपनी सुंदर पत्नी के साथ मुंबई अपनी किस्मत आजमाने
उसके नाम का आधा हिस्सा अभी भी जुड़ा है अनुराधा के साथ

कहते हैं अरुण पौडवाल की आत्मा म्यूज़िक स्टूडियो में अभी भी आधी रात घूमती है
वह साउंड मिक्सिंग करती है रात में गलत सुरों को सुधारती हुई

गुलशन कुमार की आकांक्षा थी अनुराधा को लता मंगेशकर और अपने भाई किशन कुमार
को ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार बनाने की
वही किशन कुमार, जो मैच फिक्सिंग के मामले में गिरफ्तार हुआ था और जेल में बीमार पड़ा था
फिर जमानत पर छूट गया था, जैसे सभी इज्जतदार और सम्मानित लोग छूट जाया करते हैं इस देश में
यह वही मैच फिक्सिंग कांड था, जिसमें अजहरुद्दीन का क्रिकेट कैरियर बरबाद हुआ था
जिसमें दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट टीम का कप्तान हैंसी क्रोनिए भी फँस गया था
और विमान दुर्घटना में मरने के पहले तक नहीं हो सका था अपने देश की टीम में बहाल
हालांकि भारतीय अदालत ने अजय जडेजा को बेदाग बरी कर दिया था और
वह बल्ला लेकर फिर पहुँच गया था राष्ट्रीय टीम में खेलने
अजय जडेजा की शादी हुई थी जया जेटली की बेटी के साथ
जया जेटली के पति ने बढ़ी उमर में तलाक देकर दूसरी औरत के साथ घर बसा लिया था
आश्चर्य था कि दिल्ली के महिला संगठनों ने इस पर चुप्पी साधे रखी थी
क्योंकि जया जेटली उसके पहले तहलका कांड में मशहूर हुई थीं, जिसके कारण रक्षामंत्री को
इस्तीफा देना पड़ा था
और बहुत प्रयत्नों के बावजूद मुश्किल था एक उत्पीडित भारतीय पत्नी का मेकअप कर पाना

रही बात तहलका डॉट कॉम के तरुण तेजपाल और उनके साथियों की तो
वे पोटा से बचते छिपते इस लोकतंत्र के बनैले यथार्थ में हमारी तरह ही कहीं घायल पड़े होंगे

अब क्या क्या कहा क्या लिखा जाय हर किसी की स्मृति में ये सारी बातें हैं
हालाँकि विस्मृति के जो नये उपकरण खोजे गए हैं उनमें बहुत ताक़त है
और जो शुद्ध साहित्य है वह विस्मरण का ही एक शातिर औजार है
लेकिन जो 'विचारधाराओं' वाला साहित्य है वह भी सरकारी फंडख़ोरी और
संस्थाओं की सेंधमारी की ही एक बीसवीं सदी वाली पुरानी इंडो-रूसी तकनीक है

न किसी पत्रिका न किसी अख़बार में इतनी नैतिकता है न साहस कि वे किसी एक घटना का
पिछले पाँच साल का ही ब्यौरा ज्यों का त्यों छाप दें पचास-पचपन साल की तो छोड़िए
किसी तथाकथित कहानीकार को भी क्या पड़ी है कि वह
यथार्थवाद के नाम से प्रचलित कथा में
ऐसा यथार्थ लिखे कि पुरस्कार आदि तो दूर हिंदी समाज में जीना ही मुहाल हो

तो बात आगे बढ़ाएँ...

एक ऐसी वीडियो रिकार्डिंग थी दुबई की जिसमें अबू सालेम की पार्टी में शामिल थे
बड़े-बड़े आला कलाकार और साख रसूख वाली हस्तियाँ
इसी टेप से सुराग मिलता था गुलशन कुमार की हत्या का लेकिन अदालत में चंकी पांडे ने कहा कि वह तो अबु सालेम
को पहचानता ही नहीं
और टेप में तो वह यों ही उसके गले से लिपटा हुआ दिखाई देता है
ऐसा ही बाक़ी हस्तियों ने कहा
हिंदुस्तान की अदालत ने भी माना कि दरअसल उस टेप में दिख रहा कोई भी आला हाक़िम हुक्काम, अभिनेत्रियाँ या
अभिनेता अबु सालेम को नहीं पहचानता...
और जो वह एक्ट्रेस उसकी गोद में बैठी चूमा-चाटी कर रही थी
उसका बयान भी अदालत ने माना कि कोई ज़रूरी नहीं कि कोई औरत अगर किसी को चूमे
तो वह उसे पहचानती भी हो

तो लुब्बे लुआब यह कि अबु सालेम को पहचानने के मामले में सारे गवाह मुकर गए
उसी तरह जैसे बी.एम.डब्लू. कांड में कार से कुचले गए पाँच लोगों के चश्मदीद गवाह संजीव नंदा और उसकी हत्यारी
कार को पहचानने से मुकर गए
जैसे जेसिका लाल हत्याकांड के सारे प्रत्यक्षदर्शी मनु शर्मा को पहचानने से मुकर गए

हर कोई मुकर रहा है इस मुल्क में किसी भी सुनवाई, गवाही या निर्णय के वक़्त
कोई नहीं कहता कि वह समाज या संस्कृति के किसी भी भूगोल के किसी भी हत्यारे
को पहचानता है

यह एक लुटेरा समय है
नयी अर्थव्यवस्था की यह नयी सामाजिक संरचना है
आवारा हिंसक पूंजी की यह एक बिल्कुल नयी ताक़त है और इसमें जो कुछ भी कहीं लोकप्रिय है
वह कोई न कोई अमरीकी ब्रांड है
ग़ुलाम होने और ग़ुलाम बनाने के सारे खेलों में अब बहुत बड़ा पूंजी निवेश है

और जो आजकल का साहित्य है, जिसमें लोलुप बूढ़ों और उनके वफादार चेलों की सांस्थानिक चहल-पहल है
वह भी अन्यायी सत्ता और अनैतिक पूंजी का देशी भाषा में किया गया एक उबाऊ करतब है
यह भ्रष्ट राजनीति का ही परम भ्रष्ट सांस्कृतिक विस्तार है एक उत्सव... एक समारोह..
एक राजनेता और आलोचक, कवि और दलाल, संगठन और गिरोह में
फ़र्क बहुत मुश्किल है

अनेकों हैं बुश
अनेकों हैं ब्लेयर

साथियो, यह एक लुटेरा अपराधी समय है
जो जितना लुटेरा है, वह उतना ही चमक रहा है और गूंज रहा है
हमारे पास सिर्फ़ अपनी आत्मा की आँच है और थोड़ा-सा नागरिक अंधकार
कुछ शब्द हैं जो अभी तक जीवन का विश्वास दिलाते हैं...

हम इन्हीं शब्दों से फिर शुरू करेंगे अपनी नयी यात्रा...

(रचनाकाल : जून 2003)