भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
केंचुआ / विजय वाते
Kavita Kosh से
केंचुओं में भी छोटा बड़ा केंचुआ।
कितने ऊँचे पे जा के चढ़ा केंचुआ।
गन्दे नाले का पानी क्यों रुकने लगा
लो देखो मुहाने अड़ा केंचुआ।
शक्तिशाली के आगे तो बेबस है वो
आम जन के लिए नकचढ़ा केंचुआ।
यों तो सब के लिए मांस का लोथड़ा
केंचुए की नज़र में गड़ा केंचुआ।