भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यौवन का पागलपन / माखनलाल चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
Dr.jagdishvyom (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 23:37, 27 अप्रैल 2007 का अवतरण (New page: कवि: माखनलाल चतुर्वेदी Category:कविताएँ Category:माखनलाल चतुर्वेदी ~*~*~*~*~*~*~*~ ह...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कवि: माखनलाल चतुर्वेदी

~*~*~*~*~*~*~*~

हम कहते हैं बुरा न मानो,

यौवन मधुर सुनहली छाया।


सपना है, जादू है, छल है ऐसा

पानी पर बनती-मिटती रेखा-सा,

मिट-मिटकर दुनिया देखे रोज़ तमाशा।

यह गुदगुदी, यही बीमारी,

मन हुलसावे, छीजे काया।


हम कहते हैं बुरा न मानो,

यौवन मधुर सुनहली छाया।


वह आया आँखों में, दिल में, छुपकर,

वह आया सपने में, मन में, उठकर,

वह आया साँसों में से स्र्क-स्र्ककर।


हो न पुरानी, नई उठे फिर

कैसी कठिन मोहिनी माया!


हम कहते हैं बुरा न मानो,

यौवन मधुर सुनहली छाया।