भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मौत का सन्नाटा / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:48, 11 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’ |संग्रह=थिरकती है तृष्णा / ओम …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बे-ख़ौफ़ हो आया है
गाँव की
गली-गली
गुवाड़-गुवाड़
बाखल-बाखल

गाँव में
मौत का सन्नाटा है
पर कहाँ है मौत ?
आती क्यों नहीं ?

दिशाओं से पूछता घूमता है
हथेली पर जान लिए
आवारा
वहशी
मुड़दल गादड़ा ।