भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दूबों के दरबार में / माखनलाल चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
Dr.jagdishvyom (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 23:54, 27 अप्रैल 2007 का अवतरण (New page: कवि: माखनलाल चतुर्वेदी Category:कविताएँ Category:माखनलाल चतुर्वेदी ~*~*~*~*~*~*~*~ क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कवि: माखनलाल चतुर्वेदी

~*~*~*~*~*~*~*~

क्या आकाश उतर आया है

दूबों के दरबार में?


नीली भूमि हरी हो आई

इस किरणों के ज्वार में !

क्या देखें तरुओं को उनके

फूल लाल अंगारे हैं;


बन के विजन भिखारी ने

वसुधा में हाथ पसारे हैं।

नक्शा उतर गया है, बेलों

की अलमस्त जवानी का

युद्ध ठना, मोती की लड़ियों से

दूबों के पानी का!


तुम न नृत्य कर उठो मयूरी,

दूबों की हरियाली पर;

हंस तरस खाएँ उस मुक्ता

बोने वाले माली पर!

ऊँचाई यों फिसल पड़ी है

नीचाई के प्यार में!

क्या आकाश उतर आया है

दूबों के दरबार में?


-