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इसलिए कोई गजल गाई नहीं / विजय वाते
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आज तन्हाई भी तन्हाई नहीं
इसलिए कोई गजल गई नहीं
जाहिरा तो थी नहीं कोई वजह
नींद लेकिन रात भर आई नहीं
निभ गई बस जब तलाक भी निभ गई
यों निभाने की कसम खाई नहीं
जब मिले तो यों मिले कि हर तरफ
ढूँढने पर भी वजह पाई नहीं
थी मुसलसल साथ , बिछड़ी ही नहीं
याद तेरी इस लिए आई नहीं
आज सुन लो जिन्दगी की वो खबर
जो किसी अख्बार मे आई नहीं