Last modified on 14 जून 2010, at 13:11

उसके मसीहा के लिए / परवीन शाकिर

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:11, 14 जून 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अजनबी!
कभी ज़िन्दगी में अगर तू अकेला हो
और दर्द हद से गुज़र जाए
आँखें तेरी
बात-बेबात रो रो पड़ें
तब कोई अजनबी
तेरी तन्हाई के चाँद का नर्म हाला<ref>वृत्त</ref> बने
तेरी क़ामत<ref>देह की गठन</ref> का साया बने
तेरे ज़ख़्मों पे मरहम रखे
तेरी पलकों से शबनम चुने
तेरे दुख का मसीहा बने

शब्दार्थ
<references/>