भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हल्ला बोल... / महाराज सिंह परिहार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:58, 16 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महाराज सिंह परिहार |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> भ्रष्टाच…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भ्रष्टाचार पर हल्ला बोल
टनाचार पर हल्ला बोल
मैं कहता हूँ ज़ोर से बोल
हल्ला बोल, हल्ला बोल

जो समता के रहे विरोधी
उस प्रवृत्ति पर हल्ला बोल
सपनों में भरमाया जिसने
उस नेता पर हल्ला बोल

अर्थों में बेचा शब्दों को
उस लेखक पर हल्ला बोल
गुलशन मसला जिन हाथों ने
उस माली पर हल्ला बोल

करे जो शोषण मज़दूरों का
उस शोषक पर हल्ला बोल
गन्दा करते जो मंचों को
उन कवियों पर हल्ला बोल