भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कृष्ण / मंजुला सक्सेना
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:41, 16 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मंजुला सक्सेना |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> जिसके मात्र …)
जिसके मात्र स्मरण से ही हर संताप बिसर जाता है
वह तो केवल एक कृष्ण हैं !
जिसकी स्वप्न झलक पाते ही
हर आकर्षण बिखर जाता है
जो सबके दुःख का साथी है
सबका पालक, जनक, संहर्ता
वह तो केवल एक कृष्ण हैं !
साक्षी सबके पाप पुण्य का,
न्यायमूर्ति सृष्टि का भरता,
वह अवतार प्रेम का मधु का,
अनघ,शोक मोह का हरता
वह तो केवल एक कृष्ण हैं !