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मेरी शायरी से उधार लो / विजय वाते

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मैं किसी गजल की रदीफ हूँ मुझे कायदे से संवार लो
मैं हुनर नहीं हूँ शऊर मुझे जिदंगी में उतार लो

मेरी हैसियत के ख्याल से जो रहे हो जुदा जुदा
मेरी तुमसे है यही इल्तिजा मुझे देख खुद को संवार लो

यों तो वजन भी है मेरी कहन में सभी ठीक बनाते हैं काफिये
मेरा दिल ये मुझसे कहे मगर ज़रा फ़िक्र को भी निखार लो

मेरी जिंदगी, मेरी मुश्किलें, मैं लडूंगा इनसे भी उम्र भर
कहाँ मैंने तुमसे कहा ये मुझे इन सभी से उबार लो

वो ही चाँद है वो ही आसमां वो ही भूख है वो ही मुफलिसी
जो ना कह सको नई बात तुम मेरी शायरी से उधार लो