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देह का भूगोल / रमेश कौशिक

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देह का भूगोल

नहीं नहीं
कहीं नहीं
गया है
तुम्हारा
कदली-वन
किंचित भी
नहीं हटी हैं
दूधिया पहाड़ियाँ
और उनके बीच की घाटी भी
वहीं है
कमल-कुंज ऊपर
श्याम घटा वैसी ही
छाई है

फिर क्यों
संशय-ग्रस्त अन्धे हाथ से
इन्हीं को
टटोलते हो बार-बार

है यह देह का भूगोल
देश का नहीं
जो बदल जायेगा