भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वेल्डिंग से ज़िन्दगी तक / मलय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:14, 24 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मलय }} {{KKCatKavita}} <poem> जड़ता से तिड़ककर टकराकर नीली पी…)
जड़ता से तिड़ककर
टकराकर
नीली पीलाई से निकल भाग
दौड़ता है तेज़
एक आग जीने की
दहकती फुफकारती भी जोड़ती है
जो रोशनी फुदकती है
फूल की तितली की तरह
ज़िन्दगियाँ बो जाती हैं
चंदन-सी घिस-घिसकर
उगती हैं महकते पहाड़-सी