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मैं गीत लिखती हूँ / रेणु हुसैन
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अक्सर मैं गीत लिखती हूँ
दर्द गुनती हूँ, पीड़ा बुनती हूँ,
चुन-चुन के व्यथा रखती हूँ
अक्सर मैं गीत लिखती हूँ
ये वक़्त जिससे मैं छन-छन के गुज़र रही हूँ,
ये मौन जिसको मैं अन्दर भर रही हूँ,
डर है इन बादलों में आग लगने का
डर है मुझे लोग कह न दे कर्कशा
मैं शब्द मन में धरती हूँ
मैं गीत लिखती हूँ
और कितने रंगों से छलोगे मुझको
और कितने संगो से बाँधोगे मुझको
चलते-चलते तो साथ छाया का भी छोड़ दूँगी मैं
मैं शिला नहीं धारा हूँ ख़ुद को मोड़ लूँगी मैं
मैं नित रिश्तों से थकती हूँ,
मैं गीत लिखती हूँ
अक्सर मैं...