कितने दाग़ लगे चादर में / शिशुपाल सिंह 'निर्धन'
अगर चल सको साथ चलो तुम लेकिन मुझसे यह मत पूछो
कितने चलकर आए हो तुम कितनी मंज़िल शेष रह गई?
हम तुम एक डगर के राही
आगे-पीछे का अन्तर है,
धरती की अर्थी पर सबको
मिला कफ़न यह नीलाम्बर है ।
अगर जल सको साथ जलो तुम लेकिन मुझसे यह मत पूछो,
अभी चिताओं के मेले में कितनी हलचल शेष रह गई ?
मुझे ओस की बूंद समझकर
प्यासी किरन रोज़ आती है,
फूलों की मुस्कान चमन में
फिर भी मुझे रोज़ लाती है ।
तड़प सको तो साथ तड़प लो लेकिन मुझसे यह मत पूछो,
कितनी धरा भिगोई तुमने कितनी मरुथल शेष रह गई ?
अवनी पर चातक प्यासे हैं
अम्बर में चपला प्यासी है,
किसकी प्यास बुझाए बादल
ये याचक हैं, वह दासी है ।
बनो तृप्ति बन सको अगर तुम लेकिन मुझसे यह मत पूछो,
कितनी प्यास बुझा लाए हो कितनी असफल शेष रह गई ?
जीवन एक ग्रंथ है जिसका
सही एक अनुवाद नहीं है,
तुम्हें बताऊँ कैसे साथी
अर्थ मुझे भी याद नहीं है ?
बुझा सको तो साथ बुझाओ लेकिन मुझसे यह मत पूछो,
मरघट के घट की वह ज्वाला कितनी चंचल शेष रह गई ?
घाट-घाट पर घूम रहे हैं
भरते अपनी सभी गगरिया,
बदल-बदल कर ओढ़ रहे हैं
अपनी-अपनी सभी चदरिया ।
ओढ़ सको तो साथ ओढ़ लो लेकिन मुझसे यह मत पूछो,
कितने दाग़ लगे चादर में कितनी निर्मल शेष रह गई ?