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हर हक़ीक़त दबाई जाती है / राम मेश्राम

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हर हक़ीक़त दबाई जाती है
जब सफ़ाई दिखाई जाती है

झूठ को सच करार देने को
सरपरस्ती निभाई जाती है

आग लगती नहीं है उड़-उड़कर
आग प्यारे लगाई जाती है

आने वाले ख़ुदा का रस्ता साफ़
हर निशानी मिटाई जाती है

सुन उसूलों की ज़िंदगी तेरी
रोज खिल्ली उड़ाई जाती है

बाप तक से मियाँ सियासत में
साँस अपनी छिपाई जाती है

देवता शाद, देवियाँ आबाद
भेंट क्या-क्या चढ़ाई जाती है