भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वह-2 / प्रदीप जिलवाने
Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:57, 29 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप जिलवाने |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> शायद आपको वि…)
शायद आपको विश्वास न हो
परन्तु वो खुद भी नहीं जानता
कि
उसके कितने हाथों में
कितने हथियार हैं ?
कि उसके कितने पैरों में
कितने जूतें हैं ?
कि उसके कितने मुँहों में
कितने जुबानें हैं ?
और
अपने कितने सरों की
अब तक वह चढ़ा चुका है बलि।
00