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यह अमर निशानी किसकी है? / माखनलाल चतुर्वेदी

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कवि: माखनलाल चतुर्वेदी

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यह अमर निशानी किसकी है?

बाहर से जी, जी से बाहर-

तक, आनी-जानी किसकी है?

दिल से, आँखों से गालों तक-

यह तरल कहानी किसकी है?

यह अमर निशानी किसकी है?


रोते-रोते भी आँखें मुँद-

जाएँ, सूरत दिख जाती है,

मेरे आँसू में मुसक मिलाने

की नादानी किसकी है?

यह अमर निशानी किसकी है?


सूखी अस्थि, रक्त भी सूखा

सूखे दृग के झरने

तो भी जीवन हरा ! कहो

मधु भरी जवानी किसकी है?

यह अमर निशानी किसकी है?


रैन अँधेरी, बीहड़ पथ है,

यादें थकीं अकेली,

आँखें मूँदें जाती हैं

चरणों की बानी किसकी है?

यह अमर निशानी किसकी है?


आँखें झुकीं पसीना उतरा,

सूझो ओर न ओर न छोर,

तो भी बढ़ूँ खून में यह

दमदार रवानी किसकी है?

यह अमर निशानी किसकी है?


मैंने कितनी धुन से साजे

मीठे सभी इरादे

किन्तु सभी गल गए, कि

आँखें पानी-पानी किसकी है?

यह अमर निशानी किसकी है?


जी पर, सिंहासन पर,

सूली पर, जिसके संकेत चढ़ूँ

आँखों में चुभती-भाती

सूरत मस्तानी किसकी है?

यह अमर निशानी किसकी है?